SLUM SOCCER - HOMELESS SOCCER




 दोस्तों, आज मुझे एक ऐसे महान व्यक्ति से मिलने का सौभाग्य मिला जिन्होंने हमारे देश का नाम एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है। उन्होंने एक छोटी सी चीज़ को बहुत गंभीरता से लिया और उसे अपने जीवन का मिशन बना दिया। आज एक बैठक के दौरान उनसे मिलने और उनकी प्रेरणादायक कहानी सुनने का अवसर मिला। उनका नाम है श्री विजय बारसे, नागपुर में रहने वाले 79 वर्षीय शख्स, जिनके काम से कोई भी प्रेरित हो सकता है।

विजय सर ने बताया कि वह एक छोटे से गांव से आते हैं, जहां बिजली, पानी और सड़कों जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। इसके बावजूद उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और शारीरिक शिक्षक के रूप में नौकरी की, फिर वहीं से सेवानिवृत्त हुए। नौकरी के दौरान एक बार एक संस्था उनके स्कूल में आई और कहा कि शिक्षक केवल 4-5 कक्षाओं के लिए ही नहीं बल्कि पूरे 24 घंटे के लिए वेतन पाता है, और हर शिक्षक का यह दायित्व है कि वह इसे समझे। विजय सर ने इस बात को अपने दिल में उतार लिया।

सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने महसूस किया कि उनकी पेंशन उनकी जरूरतों से अधिक है, और बिना कुछ किए घर पर बैठना उनके लिए सही नहीं था। यह उनकी बड़ी सोच को दर्शाता है, जो वास्तव में प्रशंसनीय है।

विजय सर ने देखा कि स्लम में रहने वाले कई युवा गलत आदतों में फंसे हुए हैं। एक दिन उन्होंने कुछ बच्चों को देखा जो कीचड़ में एक टूटी हुई बाल्टी से फुटबॉल की तरह खेल रहे थे। एक खेल शिक्षक होने के नाते, विजय सर के मन में विचार आया कि क्यों न फुटबॉल का खेल इन्हें उपलब्ध कराया जाए, जो कम खर्च में हो सकता है। उन्होंने उन बच्चों के बीच फुटबॉल खेल शुरू किया और यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि खेलते समय वे बच्चे अपने सभी चिंता और गलत आदतों को भूलकर सिर्फ खेल में डूब गए। यहीं से ‘झोपड़पट्टी फुटबॉल’ की शुरुआत हुई।

विजय सर का यह छोटा सा प्रयास धीरे-धीरे शहर, जिला, राज्य और फिर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा। यह बात 2001-02 की है, और उनके प्रयासों से नागपुर में इस खेल प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। पहली प्रतियोगिता में करीब 128 टीमों ने भाग लिया। आयोजन की व्यवस्था में कुछ कठिनाइयां जरूर आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपना काम जारी रखा।

इसी दौरान, उनके बेटे ने विदेश में नौकरी की, लेकिन शुरुआत में उसे समझ नहीं आया कि विजय सर क्या कर रहे हैं और इससे क्या हासिल होगा। लेकिन जब मीडिया में उनकी प्रतियोगिता की सराहना हुई और यह खबर विदेशों तक पहुंची, तो उनके बेटे को भी अपने पिता के जुनून और समर्पण का एहसास हुआ। इसके बाद उनका बेटा भारत लौट आया और अपने पिता के काम में शामिल हो गया।

विजय सर के मॉडल को यूरोप में भी अपनाया गया और वहां ‘होमलेस सॉकर’ की शुरुआत की गई। आज 180 से ज्यादा देशों में विजय सर का यह मॉडल लागू किया जा रहा है। कई संस्थाएं उनके साथ जुड़कर अलग-अलग विषयों पर काम कर रही हैं और विजय सर का परिवार भी इस काम में शामिल होकर इसे आगे बढ़ा रहा है। हाल ही में, मराठी फिल्म निर्माता श्री नागराज मंजुले जी ने श्री अमिताभ बच्चन जी को विजय सर की भूमिका देकर फिल्म "झुंड" बनाई, जिससे विजय सर के काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।

विजय सर के प्रेरणादायक भाषण से मिली दो महत्वपूर्ण सीख:

  1. जमीन से जुड़कर रहना और काम करना चाहिए – विजय सर का जीवन इस बात का उदाहरण है कि सफलता और असली बदलाव लाने के लिए अपनी जड़ों से जुड़े रहना कितना जरूरी है। उन्होंने हमेशा साधारण तरीकों से काम किया और असाधारण परिणाम प्राप्त किए।

  2. जो करना है, उसमें ज्यादा न सोचें; पहला कदम उठाएं, दूसरा कदम अपने आप पीछे आ जाएगा – विजय सर ने हमें सिखाया कि जब किसी लक्ष्य को पाना हो, तो पहले कदम से शुरुआत करें। आगे का रास्ता खुद बनता जाएगा और दोनों कदम मिलकर हमें लक्ष्य की ओर ले जाएंगे।

आज की बैठक में विजय सर को सुनना और उनके साथ तस्वीर लेने का अवसर मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। आपके काम को दिल से सलाम, विजय सर। 🙏


Apka dost

Dr. Prashant Rajankar

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