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"बटरस्कॉच आइस्क्रिम "

मीत्रानो  खाली लिहलेला मेसेज मला चांगला वाटला म्हणून आपल्यासोबत शेअर करत आहे. टीचरने शिट्टी वाजवली तसा चिमुकल्या पावलांचा ५० मुलामुलींचा गट शाळेच्या मैदानावर धावू लागला. एकच लक्ष. पलिकडच्या टोकाला टच् करुन परत लवकर यायचं. पहिल्या तिघांना बक्षिस. पहिल्या तीनसाठी सगळ्यांची चढाओढ. बघायला सगळ्यांचे आईबाबा आलेले म्हणुन उत्साह जरा  जास्तच होता. पावले परत फिरली. गर्दीतुन बघ्यांचे " पळ पळ" म्हणून  आवाज वाढू लागले. पहिल्या तिघांनी हात वर करत आनंदाने पालकांकडे पाहिलं. चौथे, पाचवे काठावर बक्षिस हुकले म्हणुन नाराज झालेले. काही पालकही नाराज झालेले. आणि नंतरचे आता बक्षिस मिळणार नाही, आता कशाला पळा..?  म्हणत चालू लागले. त्यांच्यासोबत दमलेले, मनापासुन शर्यतीत नसणारे सगळेच. ५ व्या आलेल्या मुलीने नाराजीनेच बाबाकडे धाव घेतली. बाबानेच आनंदाने पळत पुढे जाऊन तिला उचलून घेतले आणि म्हणाला, " वेल डन बच्चा... चल कुठले आइस्क्रिम खाणार ?" " पण बाबा माझा नंबर कुठे आलाय ?" मुलीनं आश्चर्याने विचारलं. " आला की. पहिला नंबर आला तुझा बेटा. " " कसा काय बाबा. ५ व

विश्वविजेता स्वामी विवेकानंद-हर दिन पावन 12 जनवरी/जन्म-दिवस

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हर दिन पावन 12 जनवरी/जन्म-दिवस विश्वविजेता स्वामी विवेकानंद यदि कोई यह पूछे कि वह कौन युवा संन्यासी था, जिसने विश्व पटल पर भारत और हिन्दू धर्म की कीर्ति पताका फहराई, तो सबके मुख से निःसंदेह स्वामी विवेकानन्द का नाम ही निकलेगा। विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र था। उनका जन्म कोलकाता में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। बचपन से ही वे बहुत शरारती, साहसी और प्रतिभावान थे। पूजा-पाठ और ध्यान में उनका मन बहुत लगता था। नरेन्द्र के पिता उन्हें अपनी तरह प्रसिद्ध वकील बनाना चाहते थे; पर वे धर्म सम्बन्धी अपनी जिज्ञासाओं के लिए इधर-उधर भटकते रहते थे। किसी ने उन्हें दक्षिणेश्वर के पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे में बताया कि उन पर माँ भगवती की विशेष कृपा है। यह सुनकर नरेन्द्र उनके पास जा पहुँचे। वहाँ पहुँचते ही उन्हें लगा, जैसे उनके मन-मस्तिष्क में विद्युत का संचार हो गया है। यही स्थिति रामकृष्ण जी की भी थी; उनके आग्रह पर नरेन्द्र ने कुछ भजन सुनाये। भजन सुनते ही परमहंस जी को समाधि लग गयी। वे रोते हुए बोले, नरेन्द्र मैं कितने दिनों से तुम्हारी प्रतीक्षा में था। तुमने आने में इतनी देर क्य

बजट से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी

2017 का बजट पेश होने में एक महीने से भी कम समय बचा है। बजट आपको प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप से प्रभावित करता है। हम आपको बजट से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी दे रहे हैं, जिसके बारे में आपको शायद पता नहीं होगा। बजट शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द 'बॉजेट' (bougette) से हुई है, जिसका मतलब होता है, चमड़े का बैग। बजट के जरिए सरकार अगले साल के आय-व्यय का ब्योरा पेश करती है, जिससें सभी स्त्रोतों से प्राप्त राजस्व और सरकारी खर्चों को एक साथ रखा जाता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार आम बजट तैयार करने में वित्त मंत्रालय, योजना आयोग, प्रशासनिक मंत्रालय और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की मुख्य भूमिका होती है। भारत में पहला बजट 7 अप्रैल 1860 को पेश किया गया था। उस समय भारत पर अंग्रेजों का राज था। इंडियन काउंसिल के फाइनैंशल मेंबर जेम्स विल्सन ने भारतीय वायसराय को सलाह दी थी कि बजट को अंग्रेजी ढांचे के आधार पर पेश किया जाए। दिलचस्प बात यह है कि जेम्स विल्सन ने ही प्रसिद्ध आर्थिक पत्रिका द इकॉनमिस्ट और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की स्थापना की थी। स्वतंत्र भारत में पहली बार तत

एमडीएच वाले दादाजी सबसे रईस CEO

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भारतीय उपभोक्ता बाजार में सबसे ज्यादा बिकने वाले प्रॉडक्ट के सीईओ को शायद ही किसी ने किसी मैगजीन कवर पर देखा हो लेकिन वह देश के लोगों के लिए जाना-पहचाना चेहरा हैं। MDH मसाले के हर पैक पर 94 साल के धरमपाल गुलाटी को पगड़ी पहने हुए आपने जरूर देखा होगा। पांचवी पास इस शख्स ने पिछले वित्तीय वर्ष में 21 करोड़ रुपए कमाई की जोकि गोदरेज कंज्यूमर के आदि गोदरेज और विवेक गंभीर, हिंदुस्तान यूनिलिवर के संजीव मेहता और ITC के वाई सी देवेश्वर की कमाई से भी ज्यादा है। उनकी कंपनी 'महाशियां दी हट्टी' जो MDH के नाम से ज्यादा लोकप्रिय है, ने इस साल कुल 213 करोड़ रुपए का लाभ कमाया। इस कंपनी के 80 प्रतिशत हिस्सेदारी गुलाटी के पास है। पांचवीं पास गुलाटी को दादा जी या महाशयजी के नाम से भी जाना जाता है। उनकी पहचान एक ऐसे मेहनती उद्यमी के तौर पर है जो फैक्ट्री, बाजार और डीलर्स का नियमित दौरा करते हैं। जब तक उनको इस बात की तसल्ली नहीं मिल जाती है कि कंपनी में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है, उन्हें चैन नहीं पड़ता है। वह रविवार को भी फैक्ट्री जाते हैं। दूसरी पीढ़ी के आंत्रप्रन्योर गुलाटी ने 60 साल पहले एम

Rules by Mr. Warren Buffet - Rules

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पत्नी ने कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना… पति- क्यों?? उसने कहा..- अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी… पति- क्यों?? पत्नी- गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी… पति- ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता… पत्नी- और हाँ!!! गणपति के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस.. पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे… पत्नी- अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा… और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!! पति- तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो… पत्नी- अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वाहपाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे… पति- वा, वा… क्या कहने!! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में?? तीन दिन बाद… पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से पति ने पूछा... पति- क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी? बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब… दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना.. त्यौहार का बोनस.. पति- तो ज

Email Was Invented By A 14 Year Old Indian Boy 32 Years Ago. But Sadly, Nobody Remembers Him.

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Yes, you heard that right. No matter how difficult it may be to believe, email really was invented by an Indian. But sadly, he has been forgotten. This is the story of VA Shiva Ayyadurai, a 14 year old Indian-American boy who made one of the most noteworthy inventions in the world history of technology. You heard that right too – he was just 14 when he invented the email! O n July 15 th , as the email completed 32 years of its existence, a post by Beyond Concepts Advertising & Designing surfaced on the internet and we were stunned to read Shiva’s awe inspiring story. Here it is! Source